Tuesday 22 May, 2007

गरीबनामा !!


पिछले दिनों मुम्बई जाने का मौका मिला...... सालों बाद रेल में सफ़र हो रहा था इसलिये उम्मीद जागी कि पता नहीं क्या क्या बदल चुका होगा..... बीते सालों में लगातार इस तरह कि खबरें दिखाई सुनाई दीं कि स्टेशनों का नक्शा बदला जा रहा है ..... अब स्टेशन आने जाने वालों se ज़्यादा और हमेशा के लिए बस जाने वालों से kam घिरा होगा…. कूड़ा कुडेदान में आराम करेगा और उद्गोश्नायें बूझो तो जानें का खेल कम से कम खेलेंगी …......कहते हैं भारतीय संस्कृति हर बदलाव को आत्मसात कर लेटी है … इन बदलावों के साथ भी शायद ऐसा ही कुछ हुआ होगा …. किये गए परिवर्तन पुराने ढर्रे के बीच ऐसे धंसे कि विलुप्त हो गए .... !! .....खैर , मेरी सवारी थी दिल्ली मुम्बई के बीच शुरू हुयी नई गरीब रथ एक्सप्रेस ......गाड़ी के प्लेटफार्म पर लगने की सूचना मिलते ही ......नव धनाड्य यात्रियों की फ़ौज इंतज़ार में लीन हो गयी …कुछ देर बाद चमचमाती गाड़ी स्टेशन पर लगी ….. देरी का कारण था … दोपहर बारह बजे से हो रही धुलायी …सुनकर जनता खुश हो गयी , गरीब रथ है तो क्या नक्शा मंहगी ट्रेनों वाला ही है …. आत्मसंतोष कि झलक चहरे पर लिए घंटे भर से इंतज़ार करते यात्री ट्रेन में सवार हुये … बर्थ पर टिकते ही सबने राहत कि सांस ली … गद्देदार है भाई …सस्ते में नहीं टाला लालूजी ने !! सामान और परिवारों को ठिकाने लगा कर बातचीत का दौर शुरू हुआ … सामुहिक समस्या के रुप में ये बात उभर कर आयी कि किसी को भी गरीब रथ नाम नहीं सुहाया …..भारत में ना नेताओं कि कमी है ना … उपलब्धियों के भण्डार रीते हैं … पचास नाम हैं रखने को .... गरीब रथ कह कर लालूजी ने भरे प्लेटफार्म इज़्ज़त की दही कर दीं !!! काहे की गरीब रथ... A C है …बैरे टहल रहे हैं…. गद्देदार बर्थ हैं … और तो और नाश्ता भी अंग्रेज़ी ...ब्रैड और कट्लेट .....

विचार विमर्श ने दिमाग कि खिड़कियाँ खोल दीं तो चाय कि चसक उठी …लेकिन घंटों तक चाय वाले का पता नहीं ... एक और मुद्दा ....गरीबों की रेल में जूस वालों कि फ़ौज और चाय वाले का ठिकाना नहीं ……सरकार आख़िर चाहती क्या है !!
सफ़र के शौक़ीन लोगों ने जैसे तैसे खाना पीना निपटाया…. इतने में रेल मंत्रालय के कारिन्दे बिस्तर लिए हाजिर हुये …. जिन्होंने झटपट ले लिए उन्हें जल्द ही मालूम हुआ ...हर गठरी का एक दाम तीस रुपया ....." तीस रुपए के बिछौने परकौन सोयेगा भला !!" जनता को ठंड में मार दिया मंत्री जीं ने.... कुलमिलाकर खाने के सामन से लेकर शौचालय की व्यवस्था तक ..... लालूजी और उनकी गरीब रथ एक्सप्रेस गरीब अमीरी के नफे नुकसान में तुलते रहे ....लेकिन फिर bhi अंत tak ये साफ नहीं हो पाया की आख़िर मामला है क्या ….. अमीरों कि सवारी में सफ़र करती गरीब जनता या गरीबों ki सवारी में सफ़र करते neo rich … या फिर …जेब से अमीर लेकिन दिमाग से गरीब लोग जिनका एक रुपया पांच में चले लेकिन सरकार का पैसा अठन्नी से ज़्यादा नहीं ….

2 comments:

Anonymous said...

Very funny and perceptive at the same time..

Anonymous said...

This article has an old school feeling to it ... loved it....