Monday 18 June, 2007

बेदर्द कैमरे ...

हाल फिलहाल झारखंड की यात्रा से लौटी हूँ .....८ दिनों में ४ ज़िले और राजधानी रांची को नापा....झूठ नहीं होगा अगर इसे झाड़ की भूमि झारखंड का क्रेश कोर्स कहूं .... एक ब्लोग समूची यात्रा को समेट नहीं सकता ... जैसे जैसे जो जो खटकेगा वो धीरे धीरे ब्लॉग में टपकेगा .....

अपनी याद में मैंने जिन इलाकों का सफ़र किया है .....झारखंड की यात्रा का अनुभव उसमें सबसे अलग रहा ..... एक पत्रकार के तौर पर ये मेरी पहली यात्रा थी ..... और इस दौरान मुझे कई बार ये एहसास हुआ कि गाँव वालों और आदिवासियों में बाहरी लोगों के लिए जो हिचक जो ग़ुस्सा है ... उसका श्रेय काफी कुछ मीडिया को जाता है .... कैमरे की ताक़त का नशा और मुद्दों को खोज निकालने का जूनून इस क़दर हावी रहता है की हम ये भूल जाते हैं कि इन अछूते गाँव और आदिवासियों को हमारी बातों और हरकतों से आजायबघर के प्राणी होने का एहसास तो नहीं हो रहा .... उन्हें खाते पीते सोते जागते कैमरे में उतारने का उतावलापन लिए कई उत्साही पत्रकार इन लोगों के मनासपटल पर हमेशा के लिए एक टीस छोड़ जाते हैं .... की दुनिया हमारी नुमाइश से हज़ारों कमा रही है लेकिन हमारी परेशानी और दिक्कत वहीँ की वहीं है..... एक गाड़ी दनदनाती हुई गाँव में घुसती है .... शेहरी लोग अजीब अजीब सामान लिए उनके घरों को खंगालते हैं ..... घंटे दो घंटे की चहल पहल ...... खाना खाओ .... खेती करके दिखाओ ...उनकी भी अपनी दिक्कतें हैं, " साहब दोपहर का समय है .... इस टाइम खेत में नहीं जाते हम लोग" ....फिर भी हम कहेंगे कोई बात नहीं .... थोडा सा करके दिखा दो .... कैमरे में दिखना चाहिए ना !!... थोडा नाच गाना भी हो जाये तो ! .... म्यूजिक से पंच आता है स्टोरी में !!
साहब क्या नाचें .... खाने को नहीं है ..... रात कि बारिश में एक ठो बैल मर गया ..... जुताई कैसे होगी ....चिंता खाए पडी है .....कैमेरामन दो मिनट सुनेगा
फिर जेब से १० रुपए निकाल कर कहेगा ... हड़ीया पीओ भाई ...तनिक रंग जमे ! पैसा देख आसपास के कुछ जुझारू लोग जमा होंगे और बिन मौसम बरसात कि तरह .... कुछ भूखे कुछ परेशान आदमी ..... कुछ मार खाई औरतें ...... कुछ चोट खाए बच्चे ..... और महुआ के नशे में डूबे कुछ बेरोजगार नौजवान ..... मांदर और ढोल पर नाचने लगे ......इतने में शूटिंग का काम पूरा हो गया ..... काफ़ी शोट्स हो गए हैं .... लेकिन गाँव तो नाचने में मस्त है .... कैमेरामन मज़ाक के मूड में है .... फुसफुसा कर कहता है ... बस अब ये नहीं रुकने वाले ..... सालों को यही तो आता है ..... बात बात पर नाचने लगते हैं ...मौका हो ना हो नाचने खडे हो जाते हैं .... कैमेरामैन का विश्लेशानात्मक बयान "शराब और नाच ने ही इन लोगों का ये हाल बना रखा है ..... दुनिया कहॉ आगे बढ गयी है ..... ये लोग ऐसे ही सड़ते रहेंगे !!! "

शूटिंग ख़त्म ..... गाँव भर से ढूँढ कर नई चटाई .... साबुत गिलास ..... मूडी और चिवड़े का नमकीन लाया गया .... नाश्ते का प्रबंध जैसे बन पडा किया गया है .... हाथ जोडे गाँव के गरीब नाश्ते के लिए पुकारते हैं .... सत्कार उनका धर्म है ...... समय की उनके पास कमी नहीं ..... लेकिन ..... टीम के पास समय नहीं है !!
हम में से कुछ हैं .... जो रूक कर प्रेम से बनी चाय पीना चाहते हैं पर .... बाकियों को जल्दी है गाँव से बाहर निकलने की........इस बीहड़ में अँगरेज़ी दारू नहीं मिलेगी और दारू नहीं तो अगले दिन का काम नहीं !!
जल्दी में विदा ली जाती है ... गाँव वाले अपनी समस्या बताने के इच्छुक हैं लेकिन समय नहीं ..... काम पूरा हो गया है .... टीम का टाइम मैनेजमेंट सख्त है ..... जब तक कैमरे का पेट नहीं भरता तभी तक की मारा मारी है .... शौट्स आ गए तो फिर टाइम् लॉस नहीं !

फिर भी गाँव वाले हाथ जोडे विदा करते हैं ... गाडी दनदनाती हुई गाँव से बाहर निकलती है ... ज़मीन पर फैलेगेन्हूं को कुचलती ..... साल के बीजों को रौंदती ..... इस गाँव को छोड़ दिया जाता हैं ... तब तक के लिए जब तक अगली बार कोई तीसरा चौथा या पांचवा दल किसी काम से गाँव में नहीं आता .... नेता तो बदनाम हैं मुं दिखाकर पीठ दिखाने के लिए .... लेकिन हम उत्साही पत्रकारों का किया जाये जो प्रोफेशनल होने के लिए इतने मह्बूर हैं की इन्सान होने की भी इजाज़त नहीं !!

9 comments:

Anonymous said...
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Sanjeet Tripathi said...

बहुत सही!!!

Girindra Nath Jha/ गिरीन्द्र नाथ झा said...

main pahli daphe aapke blog pe aaya hun....
aapki Zubaan me kahun to sachmuch report me band pare hain- "बेदर्द कैमरे ..."

Anonymous said...

parul, mujhe acchrya hain jab tum dekh kar sab samajh rahi thi tab tumhare andar ka journalist kaha kho gaya tha... kam se kam ek stroy to bana leti...insaniyat ka rona ro rahi ho... apna professionalism bhi to nahi chod pai...

sudo.inttelecual said...

good reporting madam , good reading keep writing

aarsee said...

आपका ब्लाग पढ़ा।आपकी संवेदना गहरे स्तर पर उतर आयी है।पर आपको तो इन्हें देखते हुये काम करना है।आपनए इन लोगों के बारे में लिखा तो अच्छा लगा क्योंकि कफ़ी समय मैं आदिवासी क्षेत्र में रहा हूँ और सामान्यजन उनकए प्रति जिस तरह के मनोभाव रख्ते हैं,उनसे परिचित हूँ।
आपने अपने व्यक्तित्व के बारे में कुछ mixture और solution करके लिखा है,जिसे मैं समझ नहीं पाया।खैर, कुछ level की बात होगी।

Prakash Jha said...

I was just came across your blog and the name Jharkhand caught my attention because i belong to that place. After i long time, i was reading in Hindi, so took me a little time to understand. But i agree with you completely. The Fourth Pillar of Indian Democracy, The Media, has much more to do here... What i find is that they are willing to go to any lengths to get a juicy story which will keep there TRP ratings up. Nice blog. Will keep checking it quite often. Good luck!

Anonymous said...

Hello. This post is likeable, and your blog is very interesting, congratulations :-). I will add in my blogroll =). If possible gives a last there on my blog, it is about the Smartphone, I hope you enjoy. The address is http://smartphone-brasil.blogspot.com. A hug.